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Category: Classes 9 through 12
विषय: जो तुम्हें भविष्य में बनना है, वह बनना अभी से आरम्भ करो!
1st Prize Winner
Satyarth Sharma: Halwasiya Vidya Vihar Senior Secondary School, Bhiwani (HR)
Essay extract: ... ‘बनने’ की प्रक्रिया बाहरी नहीं है, वास्तव में, यह भीतरी प्रक्रिया है। चित्त भटके नहीं, मन अटके नहीं और शांति प्राप्त हो जाए, इसके लिए ध्यान ज़रूरी है।
...हम भूतकाल की चिन्ताओं एवं भविष्य की आशंकाओं मैं घिरे रहकर वर्तमान का उपयोग कर ही नहीं पाते। ऐसे मैं हमारे ‘बनने’ की चेतना और धूमिल होती चली जाती है।
...किसी को भी जो कुछ बनना है, उसके लिए मात्र भाग्यवादी होकर हाथ पर हाथ धर कर नही बैठना चाहिए अपितु पुरुषार्थी बनकर साहस के साथ चेतनशील बनकर स्वयं का निर्माण करना चाहिए क्योंकि ईश्वर भी उन्हीं के सहायता करता है जो स्वयं अपनी सहायता करते हैं।
2nd Prize Winner
Prikshit: S.C.S.D Sarvodaya Vidyalaya, Rohini, Delhi
Essay extract: ...जिस विद्यार्थी ने अपना लक्ष्य अभी तक तय नहीं किया है वह तो उस तीर के तुल्य है जो कमान से छूट तो चुका है परन्तु जिसे न तो अपनी मंज़िल ही पता है और न ही दिशा। अतः सर्वप्रथम तो हमें लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिये।
...सही समय की प्रतीक्षा में न बैठें और न ही कल्पनात्मक संसार में रहें, कुछ पाना है तो आज और अभी; इसी वक़्त से अपने सपनों की दुनिया अर्थात अपनी मंज़िल की और बढ़ना शुरू कर दें।
3rd Prize Winner
Shivanand Pandey: Guru Nanak Inter College, Mirzapur (UP)
Essay extract: ...जो बीत गया उसे सोचकर हमें अपना वर्तमान खराब नहीं करना चाहिये| हमें जो कल बनना है, उसके लिए आज से ही रणनीति बनानी होगी।
...लक्ष्य के अनुरूप संसाधनों का निर्धारण करना अत्यन्त आवश्यक है। ...यदि हमारे पास संसाधनों का अभाव है तो हमें निराश नहीं होना चाहिये क्योंकि महत्वपूर्ण यह नहीं की हमारे पास संसाधन कितने हैं, महत्व तो इसका है की हम उपलब्ध संसाधनों का उपयोग किस प्रकार से करते हैं।
...भविष्य में निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ती है जिसे प्राप्त करने हेतु वर्तमान में योग्य गुरु अथवा सफलतम वयक्ति से दिशा निर्देश प्राप्त करते रहना चाहिये अन्यथा सब प्रकार के प्रयत्न के बावजूद भी उचित मार्गदर्शन के अभाव में लक्ष्य की प्राप्ति संदिग्ध हो जाती है।
Category: UG and PG
विषय: जो पीछे छूट गया और जो हमारे सामने है, वह उसकी तुलना में बहुत तुच्छ है जो हमारे अन्दर है
1st Prize Winner
Gautam Pratap Bhagor: Steni Memorial P.G.College, Mansarovar, Jaipur (RJ)
Essay extract: ...मानव मैं अपार क्षमतायें तथा शक्तियाँ होती हैं। ...जिनमें से कुछ शक्तियाँ कर्म से संसर्ग में सक्रिय हो जाती हैं या मानव उन्हें पहचान कर कर्मों में बदल देता है, किन्तु मानव अपनी समस्त शक्तियों या पूर्ण क्षमता को नहीं पहचान पाता।
...मनुष्य कुछ भी प्राप्त कर सकता है यदि वह अपनी आन्तरिक शक्तियों को पहचान ले।
...आन्तरिक मानसिक शक्तियों के विकास तथा अपनी क्षमताओं को पहचानने के साधन हैं: साधना, खुद का मूल्यांकन करने की कोशिश और ‘स्वयं’ को निरन्तर खोजते रहना।
2nd Prize Winner
Gulnar Bano: Din Dayal Upadhyay Snatakottar Mahavidyalaya, Sitapur (UP)
Essay extract: ...मनुष्य के जीवन का सबसे आश्चर्यचकित क्षण वह होता है, जब वह अपने विषय में जानने लगता है। जिस क्षण उसको अपनी दिव्य शक्ति के विषय में पता चलता है, उस क्षण वह अपने शरीर में परमात्मा के सामीप्य का आभास करता है।
...हमें अपने अंदर की सोच को ऊँचा बनाना चाहिये, और अपनी 'आत्मा की गहनता' में जाकर अपनी वास्तविक प्रकृति को समझना चाहिये।
...आन्तरिक शक्ति की स्थापना होने से बाह्य शक्ति स्वयं स्थापित हो जायेगी क्योंकि जो मनुष्य के भीतर होता है वह ही बाहर भी परिलक्षित होता है। अतः यदि हमें बाहर शक्ति चाहिये तो हमें अंदर भी शक्ति लानी होगी।
3rd Prize Winner
Deepa Solanki: Bankey Bihari Kanya Mahavidyalaya, Ujhani, Badaun (UP)
Essay extract: ...जो पीछे छूट गया अर्थात भूतकाल; जो हमारे सामने है अर्थात वर्तमान और भविष्य, वह उसके सामने तुच्छ है जो हमारे अन्दर है अर्थात आत्मा... आत्मा ही परमात्मा का अंश है। आत्मा, अनादि और अनन्त है,प्रत्येक प्राणी इस दृष्टि से पूर्ण है, किन्तु अज्ञानता के कारण वह इस पूर्णता को समझ नही पाता। ज्ञान एवं शक्ति का अनन्त भंडार अंत:करण मे विद्यमान होते हुए भी मनुष्य स्वयं को ज्ञानहीन एवं शक्तिहीन समझता है और जिस परमात्मा की खोज मे वह इधर-उधर भटकता है वह तो कण-कण मे व्याप्त है, उसकी आत्मा मे विधमान है।
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